दूर रहकर भी होती है क्या शिकायत मेरी - हिंदी ग़ज़ल
दूर रहकर भी होती है क्या शिकायत मेरी?
फिर इतनी क्यों करता था वकालत मेरी?
जो शख़्स मेरा बहुत ख़याल रखता था,
आज मालूम है क्या उसको तबीअत मेरी?
अल्फाजो से कितना बयाँ करूँ अब मैं,
वो अगर समझता तो ठीक होती हालत मेरी...
बिना बताए तेरा छोड़ जाना यक़ीन नहीं देता,
ये फांसले बढ़ेंगे या ख़तम होगी हिकायत मेरी...
अब भी रोक रखे हैं 'अंजान' इंतजार में अश्क,
ग़र बहेंगे तो टूट जाएगी ये इमारत मेरी...
~ अंजान
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आप का ये आर्टिकल मुझे बहुत पसंद आया आप भी मेरा ये आर्टिकल ghar baithe paise kaise kamaye
जवाब देंहटाएंपढ़ सकते है सायद आप को भी पसंद आये
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