New Hindi Ghazal/Sher/Shayari of Anjan
New Hindi Ghazal/Sher/Shayari of Anjan
मेरे बाद वो भी खुद को सँभाल नहीं पाया,
इतना करीब था कि दिल से निकाल नहीं पाया...
मेरी रूह में इस तरह समाया वो शख़्स,
मैं रोक ख्वाब-ओ-खयाल नहीं पाया...
उसके जाने के वक्त मैं जैसे ख़त्म हो रहा था,
फिर भी उस से मैं कर कील-ओ-क़ाल नहीं पाया...
मुझे तो उससे कोई शिकायत भी नहीं है,
हिज्र में अपना बता दिल-ए-हाल नहीं पाया...
इक बात है जिसका मुझे अफ़सोस भी है,
खुदा को जो भी था मंजूर वो मैं टाल नहीं पाया...
~ अंजान
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