Parveen Shakir Poetry in Hindi - कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए


Parveen Shakir Poetry in Hindi - कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए 

kuch faisla to ho parveen shakir

कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए 

पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए 


नश्तर-ब-दस्त शहर से चारागरी की लौ 

ऐ ज़ख़्म-ए-बे-कसी तुझे भर जाना चाहिए 


हर बार एड़ियों पे गिरा है मिरा लहू 

मक़्तल में अब ब-तर्ज़-ए-दिगर जाना चाहिए 


क्या चल सकेंगे जिन का फ़क़त मसअला ये है 

जाने से पहले रख़्त-ए-सफ़र जाना चाहिए 


सारा ज्वार-भाटा मिरे दिल में है मगर 

इल्ज़ाम ये भी चाँद के सर जाना चाहिए 


जब भी गए अज़ाब-ए-दर-ओ-बाम था वही 

आख़िर को कितनी देर से घर जाना चाहिए 


तोहमत लगा के माँ पे जो दुश्मन से दाद ले 

ऐसे सुख़न-फ़रोश को मर जाना चाहिए

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