मंजर भोपाली साहब की एक बेहतरीन छोटी सी ग़ज़ल यहां पेस करता हूँ।
आपसे नही बिछड़े, जिंदगी से बिछड़े हैं...
हम चराग़ अपनी ही, रौशनी से बिछड़े हैं....
इससे बढ़कर क्या होगा, सानेहा मुकद्दर का,
जिससे भी मोहब्बत की हम उसीसे बिछड़े हैं...
Manzar bhopali shahab shayari in hindi text and urdu language.
श्रीमान बहुत ही अच्छा आर्टिकल लिखा हैं आपने
जवाब देंहटाएं